उद्योगों की स्थापना को प्रभावित करने वाले कारक

उद्योगों की स्थापना को प्रभावित करने वाले कारक

आधुनिक उद्योगों की एक विशेषता यह है कि वे अत्यंत अस्थिर है और सतत अपनी जगह परिवर्तित करते रहते हैं। उदाहरण के लिए, जिन क्षेत्रों में औद्योगीकरण शुरू हुआ था जहाँ सैंकड़ों कारखाने लगे थे और लाखों मज़दूर बसे थे. आज वे वीरान है क्योंकि उद्योग वहाँ से पलायन कर गए। 1970 के दशक में भारत के प्रमुख शहरों, जैसे-मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, इन्दौर आदि में विशाल कपड़ा मिलें थीं। 1980 के दशक में ये सब मिलें बंद हो गई और बिलकुल नए इलाकों में छोटे-छोटे पावर लूम संयत्र स्थापित हुए जो पहले से अधिक मात्रा में कपड़ा उत्पादन करने लगे।

इसी तरह अमेरिका में जिन क्षेत्रों में विशाल मोटरगाड़ी के उद्योग लगे थे अब यहाँ सारे उद्योग बंद हो गए हैं। आज यह उद्योग कई छोटी इकाइयों में बँटकर दुनिया के कई देशों में फैला हुआ है। तो यह निर्णय किस तरह होता है कि कोई उद्योग कहाँ पर लगाया जाएँ? इसके कई कारक हैं मगर सबसे निर्णायक सरोकार है मुनाफा।

पूँजीपतियों को किसी समय जहाँ कारखाने लगाने से सबसे अधिक मुनाफा की अपेक्षा होगी वहीं वे कारखाने लगाएँगे और उसी समय तक जब तक किसी दूसरी जगह से अधिक मुनाफा न मिल जाए। कहाँ कारखाना लगाने से मुनाफा अधिक मिल सकता है, यह कई कारकों पर निर्भर होता है उत्पादन की तकनीक, कच्चे माल के स्रोत, बाजार, यातायात के साधन, राज्य की औद्योगिक व कर नीति और सबसे महत्वपूर्ण कुशल मगर कम वेतन पर काम करने वाले कामगारों की उपलब्धता।

18वीं और 19वीं सदी में यातायात के साधन कम विकसित थे। अत्यधिक मात्रा में लौह अयस्क और कोयला जैसे कच्चे माल के उपयोग के बाद कम मात्रा में लोहा या इस्पात बनता था इस कारण खदानों के पास ही लोहा गलाने के उद्योग लगे ताकि कच्चा माल को दूर तक नहीं ले जाना पड़े। लेकिन समय के साथ इन खदानों में उच्च कोटि का कच्चा माल मिलना बंद होने लगा और दूर-दराज के क्षेत्रों से मंगाना पड़ा।

ऐसे में पुराने इलाकों से लोहा उद्योग हटने लगे और अन्य सुविधाजनक जगहों में लगाए जाने लगे। जब यातायात और कच्चा माल पहुँचाने के सस्ते साधन बने तो ये उद्योग ऐसी जगह पर लगने लगे जहाँ कुशल मज़दूर मिले और जहाँ कम मजदूरी पर काम करने के लिए तैयार थे। उद्योगपतियों ने पाया कि पुराने औद्योगिक क्षेत्रों में मज़दूरों ने संगठित होकर अपने वेतन और अन्य सुविधाओं को बढ़ा लिया था। मज़दूरों के दबाव के कारण उन देशों में मजदूरों के हित में कई कानून भी बने थे. जैसे किसी मजदूर को बिना मुआवजा काम से नहीं निकाला जा सकता था या मज़दूरों के काम के घण्टे व न्यूनतम वेतन सरकार द्वारा निर्धारित होता था।

अब उद्योगपति उपनिवेश और अन्य देशों में अपना उद्योग लगाने लगे जहाँ गरीबी के कारण लोग कम मज़दूरी पर काम करने के लिए तैयार हो जाते थे, जहाँ सरकारों ने मजदूरों के हित में कानून नहीं बनाए थे या उन्हें लागू नहीं कर रहे थे और जहाँ मज़दूर संगठित नहीं थे। यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि आज यातायात और संचार तेज़ होने के साथ-साथ बहुत सस्ता भी हो गया है।

उदाहरण के लिए दंतेवाड़ा से खोदा गया लौह अयस्क पानी के साथ घोलकर पाइप लाइन के माध्यम से बहाकर 250 किलोमीटर दूर विशाखापट्टनम बंदरगाह तक ले जाया जा सकता है। वहाँ उसे लौह कंकड़ के रूप में परिवर्तित करके निर्यात किया जाता है। इसे किरन्दुल विशाखाप‌ट्टनम स्लरी लाइन कहते हैं। इसी तरह की एक पाइप लाइन ओडिशा में भी बनी हुई है।

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