खनिजों का वितरण
भारत के प्रमुख खनिज संसाधन है लौह अयस्क, कोयला, क्रोमाइट, मैंगनीज, टंग्स्टन, बॉक्साइट, ताँबा, सीसा, पेट्रोलियम, यूरेनियम इत्यादि।
लौह अयस्क
लौह अयस्क से कच्चा लोहा तथा कई प्रकार के इस्पात तैयार किए जाते हैं। यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आधुनिक विकास का आधार लोहा है। आप खुद अनुमान लगा सकते हैं कि आधुनिक जीवन, कृषि, औद्योगिक उत्पादन, निर्माण और यातायात में लोहा और इस्पात का कहाँ-कहाँ और कितनी मात्रा में उपयोग होता है। इसी कारण कच्चे लोहे का उत्पादन अन्य धातुओं के उत्पादन से भी अधिक होता है।
इसकी विशेषता होती है कि इसमें अन्य धातुओं को मिलाकर इसकी
चित्र 4.1 खुली खदान
मज़बूती और कड़ेपन को घटाया बढ़ाया जा सकता है। लौह अयस्क शुद्ध रूप में नहीं पाया जाता। चट्टान में लोहे के अतिरिक्त अन्य खनिज भी मिले होते हैं, जैसे-गंधक, फास्फोरस, ऐल्युमिना, चूना, मैग्नीशियम, सिलिका, टिटेनियम आदि। इसे लौह अयस्क कहते हैं। रासायनिक प्रक्रिया के द्वारा लोहे को इनसे अलग किया जाता है।
धातु की मात्रा के अनुसार लौह अयस्क को चार प्रकार में बाँटा जाता है हेमेटाइट (इसमें 70% लोहा होता है) मेग्नेटाइट (70.4%), लाइमोनाइट (59.63%) तथा सिडेराइट (48.2%)। भारत में अधिकांश भंडार हेमेटाइट और मेग्नेटाइट का है। भारत में लौह अयस्क का अनुमानित भंडार (1) अप्रैल 2010 में) 1788 करोड़ टन है।
हेमेटाइट अयस्क प्रमुखतः प्रायद्वीपीय पठार में पाया जाता है। उच्च कोटि के हेमेटाइट अयस्क के लिए छत्तीसगढ़ का बैलाडीला क्षेत्र, कर्नाटक का बेल्लारी होस्पेट क्षेत्र तथा झारखण्ड-ओडिशा का सिंहभूमि-सुन्दरवन क्षेत्र प्रमुख है। मेग्नेटाइट किस्म का अयस्क कर्नाटक, गोवा, केरल, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान और झारखण्ड में है। झारखण्ड और ओडिशा के लौह अयस्क के भंडार आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है तथा देश में लोहा व इस्पात कारखानों की स्थिति निर्धारण पर इनका निर्णायक प्रभाव पड़ा है।
छत्तीसगढ़ में 26476 मिलियन टन लौह अयस्क के भंडार है जो देश का लगभग 18.67% है। देश में लौह अयस्क उत्पादन में छत्तीसगढ़ तीसरे स्थान पर है। राज्य का उच्च कोटि का लौह अयस्क भंडार बैलाडीला को माना जाता है। दंतेवाड़ा, दुर्ग, कांकेर तथा राजनांदगाँव में लौह अयस्क संचित है।