प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत कैसे हुई?

प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत कैसे हुई?

एक बहुत छोटी-सी घटना से इस युद्ध की शुरुआत हुई। ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य की नज़र अपने एक छोटे-से पड़ोसी देश सर्विया पर थी जिसे वह अपने राज्य में मिलाना चाहता था। इससे सर्विया के राष्ट्रवादी लोग नाराज़ थे। वे ऑस्ट्रिया को सबक सिखाना चाहते थे ताकि वह उन पर हमला न करे। एक ऐसे ही राष्ट्रवादी सर्बियाई ने जून सन् 1914 के दिन सारजेवो नामक जगह पर ऑस्ट्रिया के राजकुमार और उनकी पत्नी की गोली मारकर हत्या कर दी।

इस हत्या का बदला लेने के लिए ऑस्ट्रिया ने सर्बिया पर हमला बोल दिया। सर्विया की मदद के लिए रूस और ऑस्ट्रिया की मदद के लिए जर्मनी युद्ध में उतरे। देखते-देखते फ्रांस, ब्रिटेन आदि भी इस युद्ध में खिंचते चले गए। अब सवाल यह है कि ये सारे देश इस युद्ध में क्यों पड़े?

जब हम इतनी बड़ी घटना का कारण खोजते हैं तो हमें कई बातों पर विचार करना होता है। कुछ बातें तो इन राज्यों की बदलती ज़रूरतों से संबंधित हैं। ये सारे राज्य तेज़ी से औद्योगीकरण कर रहे थे और उनमें आपस में प्रतिस्पर्धा थी कि कौन सबसे ताकतवर औद्योगिक देश बनेगा। जैसे आपने पिछली कक्षा में पढ़ा होगा, औद्योगीकरण पहले ब्रिटेन में शुरू हुआ था और उन्नीसवीं सदी के अन्त तक जर्मनी ब्रिटेन की बराबरी करने का प्रयास कर रहा था।

इसी तरह ऑस्ट्रिया, फ्रांस, इटली और रूस भी कोशिश कर रहे थे। औद्योगीकरण के लिए खनिज संपदाओं, व्यापक बाज़ार और उपनिवेशों की ज़रूरत थी। हर देश इसी प्रयास में था कि यूरोप तथा विश्व के अन्य खनिज स्रोत उनके कब्ज़े में आए। ब्रिटेन जैसे पुराने औद्योगिक देशों के कब्ज़े में ये पहले से ही थे लेकिन जो नये देश विकसित हो रहे थे वे ब्रिटेन या अन्य किसी कमजोर देश से इलाके छीनना चाहते थे।

उदाहरण के लिए, जर्मनी ने सन् 1871 में फ्रांस को युद्ध में हराकर अलसास-लारेन नामक खनिज प्रधान क्षेत्र को हथिया लिया था। उसने पोलैंड की जमीन पर भी अधिकार जमा रखा था। अब वह अपने क्षेत्र को अधिक विस्तृत करना चाहता था। लगभग यही हाल फ्रांस, ऑस्ट्रिया, रूस, इटली आदि देशों का था। वे किसी-न-किसी तरीके से अपने क्षेत्र और प्रभाव को बढ़ाना चाहते थे। यह तभी संभव था जब वे पहले से स्थापित ब्रिटेन जैसी प्रभावशाली देशों को चुनौती दें।

उन दिनों ब्रिटेन का समुद्रों पर एकाधिकारं था जिसके कारण उसका व्यापार और उपनिवेशों पर बे-रोकटोक नियंत्रण चलता था। जर्मनी ब्रिटेन के इस नौसैनिक वर्चस्व को समाप्त करना चाहता था और अपने जहाज़ों को बे-रोकटोक समुद्रों पर आने-जाने की स्वतंत्रता चाहता था। वैसे जर्मनी को केवल उत्तरी सागर के बन्दरगाह उपलब्ध थे।

अब वह अटलांटिक महासागर, भूमध्य सागर, और हिन्द महासागर पर भी अपनी पहुँच बनाना चाहता था। अतः स्वाभाविक था कि उसका टकराव ब्रिटेन से हो। इसलिए जर्मनी एक शक्तिशाली नौसेनिक बल तैयार कर रहा था जो ब्रिटेन के नौसैनिक ताकत को चुनौती दे सके।

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