लेनिन और अक्टूबर कांति
इस बीच यह स्पष्ट हो रहा था कि अस्थाई सरकार युद्ध जारी रखना चाहती है और वह जमीन के वितरण को लेकर गंभीर नहीं है। न ही वह कालाबाजारी पर रोक लगा पायी और न ही सबको रोटी उपलब्ध करा पा रही थी। विभिन्न बहाने बनाकर वह संविधान सभा का गठन भी नहीं कर रही थी।
इस बीच साम्यवादी व्लादिमीर लेनिन के नेतृत्व वाली बोल्शेविक पार्टी ने मज़दूरों व सैनिकों के बीच अस्थाई सरकार के विरुद्ध प्रचार किया और उन्हें उसके खिलाफ विद्रोह करने के लिए उकसाया। लेनिन का मानना था कि मध्यम वर्ग रूस में कमजोर होने के कारण वह लोकतंत्र स्थापित नहीं कर पाएगा और न ही वह किसानों को जमीन दिलवाएगा।
इसलिए सोवियत जिनके पास वास्तविक शक्ति थी, को सत्ता हथिया लेना चाहिए और इसका नेतृत्व बोल्शेविक पार्टी को करना चाहिए। शुरू में मजदूर व सैनिक उनके पक्ष में नहीं थे मगर जैसे-जैसे समय बीतता गया और अस्थाई सरकार की कमजोरियों उजागर हुई तथा युद्ध में हार का सामना करना पड़ रहा था तो वे बोल्शेविकों के विचारों को अपनाने लगे। चित्र 8.7: 1917 में एक सभा को संबोधित करते हुए वी आई लेनिन
हमने पहले देखा था कि किस प्रकार रूस के किसान, मजदूर और सैनिक आपस में जुड़े हुए थे और एक-दूसरे की समस्याओं के प्रति सचेत थे। इस कारण उनके बीच एक साझा समझ बनना और उसके लिए लड़ना स्वाभाविक था।
अक्टूबर 1917 (7 नवंबर 1917) को बोल्शेविक पार्टी के नेतृत्व में पेट्रोग्राड सोवियत ने अस्थाई सरकार को हटाकर क्रांतिकारी सरकार का गठन किया। अगले दिन पूरे रूस के सोवियतों की सभा में लेनिन ने नई सरकार की घोषणा की और दो महत्वपूर्ण ऐलान किए पहला, शान्ति संबंधित ऐलान जिसमें युद्ध विरान और लोकतांत्रिक शान्ति की अपील की गई और दूसरा, ‘जमीन संबंधित ऐलान जिसमें भूस्वामियों की जमीन का राष्ट्रीयकरण और किसानों को ज़मीन वितरण का निर्णय था। हर गाँव के गरीब किसानों की समितियों को वहाँ के भूस्वामियों की ज़मीन को आपस में बाँटने का अधिकार दिया गया।
दूसरी ओर कारखानों में मज़दूरों की समितियों को कारखानों के संचालन में भागीदारी दी गई। चन्द ही दिनों में हर जगह पुरानी प्रशासन व्यवस्था, नौकरशाह और पुलिस की जगह सोवियतों ने शासन व्यवस्था अपने हाथों में ले ली। सोवियत शासन ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि सभी शहरवासियों को खाने के लिए रोटी और रहने के लिए आवास मिले।
इसके साथ ही रूस ने ऐलान किया कि ज़ारशाही के तहत जो भी राष्ट्र रूसी साम्राज्य द्वारा दबाए गए थे ये अब स्वतंत्र हैं और अपनी मर्जी से तय कर सकते हैं कि वे रूस के साथ रहना चाहते हैं या स्वतंत्र होना चाहते हैं। फिनलैंड, लटेविया, एस्टोनिया, यूक्रेन जैसे देश इस प्रकार स्वतंत्र हुए।
जहाँ तक विश्व युद्ध को समाप्त करने की बात थी, रूस की अपील के बावजूद कोई देश शान्ति समझौते के लिए तैयार नहीं हुआ। ऐसे में रूस ने जर्मनी से मार्च 1918 में एक समझौता करके युद्ध समाप्त किया। लेकिन इस संधि के द्वारा रूस को बहुत अधिक ज़मीन जर्मनी को देनी पड़ी।
सन् 1918 से 1922 के बीच रूस के पुराने भूस्वामी और सेनापतियों ने नई सरकार के विरुद्ध गृहयुद्ध छेड़ा और उन्हें ब्रिटेन, फ्रांस, अमरीका आदि देशों का समर्थन भी मिला। इन देशों की सरकारें यूरोप में साम्यवादी विचारों के फैलने से घबरायी हुई थीं। लेकिन 1922 तक रूस की सरकार इन्हें हरा पाई। इसी बीच पुराने साम्राज्य के कई हिस्से जो स्वतंत्र हुए थे अब रूस के साथ हो लिए और यू एस एस आर (सोवियत समाजवादी देशों का संघ) की स्थापना हुई।
स्तालिन : 1924 में लेनिन की मृत्यु के बाद जोसेफ स्तालिन ने नेतृत्व संभाली और कुछ ही वर्षों में वह साम्यवादी पार्टी और सोवियत रूस का सर्वशक्तिमान नेता बना। नेतृत्व सम्भालते ही उसकी नीतियों का विरोध करने वाले कई नेताओं को मार डाला गया। स्तालिन 1953 में अपनी मृत्यु तक सोवियत साम्यवादी पार्टी और सोवियत संघ का तानाशाह बना रहा।