वरसाई संधि जून 1919
प्रथम विश्व युद्ध के बाद किए गए संधियों में वरसाई की संधि सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। 28 जून 1919 को जर्मनी से ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका ने यह शान्ति समझौता किया। वैसे इस समझौते को ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका ने मिलकर तैयार किया था। इसकी कई शर्तें ऐसी थीं जो जर्मनी को मान्य नहीं थीं लेकिन जर्मनी को यह धमकी दी गई कि अगर वह इन्हें न माने तो उस पर तीनों मिलकर आक्रमण कर देंगे। विवश होकर जर्मनी को इस संधि को स्वीकार करना पड़ा। आइए, इसकी प्रमुख शर्तों पर नजर डालें:
- इस संधि में जर्मनी और उसके सहयोगियों को युद्ध और उसके द्वारा दूसरे देशों को हुई हानि के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया और उसकी क्षतिपूर्ति के लिए जर्मनी पर हर्जाना भरने का दायित्व रखा गया। विशेषकर जर्मन सेना ने जिन रिहायशी इलाकों, कारखानों तथा खदानों को नष्ट किया उनकी भरपाई की जाएगी। यह तय किया गया कि जर्मनी 66.000 लाख पाउंड राशि किश्तों में फ्रांस, बेल्जियम और ब्रिटेन को देता रहेगा। कई प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों का मानना था कि यह राशि जर्मनी की क्षमता से अधिक है जिसके कारण उसका आर्थिक पुनर्निर्धारण नहीं हो पाएगा और यह पूरे यूरोप के लिए अहितकारी है। विजयी देश के द्वारा यह नहीं माना गया क्योंकि वे खुद अमेरिका से कर्ज लेकर युद्ध लड़े थे और जर्मनी से मिले हर्जाने से उस कर्ज को पटाने की मंशा रखते थे। जब कई वर्षों बाद यह स्पष्ट हुआ कि जर्मनी इतनी बड़ी रकम नहीं दे पाएगा तो इसे कम करके 20,000 लाख पाउंड किया गया।
- जर्मनी ने युद्ध में जितनी ज़मीन पर अपना अधिकार जमाया था उन्हें उन देशों को वापस देना तय हुआ जैसे बेल्जियम व फ्रांस। पूर्व में रूस से हुई संधि में जो ज़मीन जर्मनी को मिली हुई थी उस पर स्वतंत्र राज्यों की स्थापना हुई।
- सन् 1871 में जर्मनी द्वारा फ्रांस से छीना गया अल्सास और लारेन क्षेत्र फिर से फ्रांस को लौटाया गया। इसके अलावा फ्रांस की खदानों को पहुँचे नुकसान की भरपाई के लिए सार क्षेत्र के खदानों के उत्पादन 15 वर्षों के लिए फ्रांस को सौंपे गए। उस क्षेत्र पर राष्ट्र संघ का प्रशासन स्थापित हुआ। वह हमेशा के लिए जर्मनी या फ्रांस में रहेगा, 15 साल बाद जनमत संग्रहण करके तय होना था।
- पूर्व में जर्मन साम्राज्य के एक बड़े हिस्से को काटकर नवगठित पोलैंड देश में मिला दिया गया। इसका यह परिणाम हुआ कि जर्मनी का पूर्वी हिस्सा बाकी जर्मनी से अलग-थलग पड़ गया- दोनों हिस्सों के बीच की डैन्जिंग पट्टी पोलैंड को दे दी गई ताकि उसकी समुद्र तक पहुँच बनी रहे।
- इस तरह युद्ध पूर्व जर्मन साम्राज्य की भूमि से लगभग 65,000 वर्ग किमी ज़मीन काटकर विभिन्न देशों को दे दी गई।
- अफ्रीका में जर्मनी के जो उपनिवेश थे उन्हें राष्ट्र संघ के संरक्षण में ले लिया गया और राष्ट्र संघ ने उन्हें ब्रिटेन, फ्रांस व पुर्तगाल के हवाले कर दिया। चीन में जो जर्मन नियंत्रित क्षेत्र थे उन्हें वापस चीन को न देकर जापान को दे दिया गया (क्योंकि जापान ने युद्ध में जर्मनी के खिलाफ भाग लिया था)। इस प्रकार 19वीं सदी में जर्मनी ने जो उपनिवेश हासिल किए थे वे अब जर्मनी के हाथ से निकल गए।
- संधि की कई शर्तों के अन्तर्गत जर्मनी का निरस्त्रीकरण किया गया। उसकी सेना को एक लाख सैनिकों तक सीमित किया गया। उसकी तोप, पनडुब्बी, युद्धपोत तथा हवाई जहाज़ों को नष्ट कर दिया गया। फ्रांस की सीमा से लगी हुई पट्टी, राईनलैंड में जर्मन सेना का प्रवेश वर्जित किया गया। कुल मिलाकर यह प्रयास था कि जर्मनी के पास फिर से आक्रमणकारी सेना कभी न बने।
- एक शर्त के द्वारा यह तय किया गया कि जर्मनी और ऑस्ट्रिया का विलय राष्ट्र संघ की अनुमति के बिना नहीं होगा। एक संधि के माध्यम से ऑस्ट्रिया और हंगरी को अलग किया गया और इनके अधीन रहे कई प्रदेश के लोगों को स्वतंत्र राज्य गठित करने दिया गया। इस तरह सबसे अधिक प्रभाव ऑस्ट्रिया पर पड़ा जिसके पास केवल कृषि प्रधान प्रदेश रह गए और आर्थिक विकास के संसाधन नहीं रहे। ऑस्ट्रिया की काफी बड़ी आबादी जर्मन भाषा बोलती थी और यह स्वाभाविक था कि दोनों का विलय हो। लेकिन विजयी देशों ने उस पर रोक लगा दी।