आयु संघटन (बच्चों, युवा और वृद्धों का अनुपात)

आयु संघटन (बच्चों, युवा और वृद्धों का अनुपात)

विश्लेषण के लिए किसी क्षेत्र की जनसंख्या को तीन विस्तृत आयु वर्ग में बाँटा जाता है बालक वर्ग, युवा वर्ग एवं वृद्ध वर्ग। किसी भी समाज में अधिकतम उत्पादक क्षमता युवा वर्ग में होता है जो घरों, खेतों, कारखानों व दफ्तरों में काम कर सकता है। बच्चे और बूढ़े प्रायः उनपर आश्रित होते हैं। बच्चे भविष्य के उत्पादक बनेंगे और उन्हें उस भूमिका के लिए तैयार करना होगा। दूसरी ओर वृद्धजनों के लिए सहायता के विशेष प्रावधान करने की आवश्यकता होगी। इस तरह की नीति निर्माण के लिए यह जानना जरूरी है कि देश व प्रदेश में आबादी की आयु वर्गों का वितरण कैसा है?

बालक-बालिका वर्ग इस

आयु वर्ग में 15 साल से कम उम्र को शामिल किया जाता है सामान्य रूप से इस वर्ग के लोग दूसरे वर्ग पर निर्भर रहते है और इनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक उन्नति आदि की व्यवस्था दूसरे वर्ग के लोग करते हैं। आर्थिक दृष्टि से इस वर्ग के लोगों को क्रियाशील नहीं माना जाता, हालाँकि बहुत सारे क्षेत्रों में बाल श्रमिक की मौजूदगी को नकारा नहीं जा सकता।

युवा वर्ग : इस वर्ग में 15 से 59 वर्ष आयु वर्ग के लोग आते हैं। गौर करेंगे तो पाएँगे कि यह आयु वर्ग सर्वाधिक क्रियाशील वर्ग होता है और अक्सर इस आयु वर्ग पर ही अन्य दोनों आयु वर्ग के लोग (बालक और वृद्ध) आश्रित रहते हैं। यह वर्ग अधिक गतिशील भी होता है। रोज़गार की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह सबसे ज़्यादा प्रवास इसी वर्ग से होता है।

वृद्ध वर्ग : 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोग इसमें शामिल होते हैं। इस उम्र के बाद लोगों की क्रियाशीलता में कमी आने लगती है और इस वर्ग के अधिकांश लोग (जो नौकरी पेशा नहीं है और जिनका कोई मजबूत आर्थिक आधार नहीं है) अपनी ज़रूरतों के लिए युवा वर्ग पर आश्रित रहते हैं। किसी भी देश के आयु विन्यास को दर्शाने के लिए सामाजिक विज्ञान में जनसंख्या पिरामिड का प्रयोग किया जाता है। भारत के आयु पिरामिड को आरेख भारत 2014 में देखें।

इसमें प्रत्येक चार वर्ष के अन्तराल में महिला और पुरुषों की संख्या दी गई है। आप देख सकते हैं कि भारत में 2014 में बच्चों और युवाओं का अनुपात वृद्धों की तुलना में अधिक है। उसमें भी 20 वर्ष की आयु से कम लोगों का अनुपात अन्य किसी आयु वर्ग से अधिक है। इसका मतलब है कि अगले 20 वर्ष तक भारत में उत्पादक कार्य करने वाले उम्र में लोगों की कमी नहीं आएगी। साथ ही वृद्धों की संख्या कम होने के कारण अर्थव्यवस्था पर कम भार होगा।

लेकिन अगर हम महिला और पुरुष वाले स्तंभों की तुलना करें तो पता चलेगा कि आने वाली युवा पीढ़ी में महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में बहुत कम होने वाली है क्योंकि 8 साल से कम उम्र के बच्चों में बालिकाओं का अनुपात बहुत कम है। अब हम भारत के इस आरेख की तुलना पश्चिमी अफ्रीका और पश्चिमी यूरोप के आरेखों से करेंगे। पश्चिमी अफ्रीका के आरेख से पता चलता है कि वहाँ की आधे-से-अधिक आबादी की उम्र 20 वर्ष से कम है।

वहीं 50 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोग 12 प्रतिशत से भी कम है। यह एक गंभीर स्थिति की ओर इशारा करता है जहाँ अधिकतर लोग पचास वर्ष की उम्र से पहले ही मर जाते हैं। इसकी तुलना पश्चिमी यूरोप से करें तो एक और चिन्ताजनक बात उभरती है। यूरोप में आप देख सकते हैं कि लगभग 35 प्रतिशत लोग पचास वर्ष से अधिक उम्र के हैं। लेकिन अगर हम वहाँ बच्चों की दशा देखें तो पाते हैं कि वहाँ लगातार बच्चों का अनुपात कम होते जा रहा है।

अर्थात् पश्चिमी यूरोप में अधिक लोग लंबी उम्र तक जीते हैं मगर वहाँ इतने कम बच्चे पैदा हो रहे हैं कि आने वाले दशकों में बहीं की आबादी कम होती जाएगी और धीरे-धीरे वहाँ वृद्धजन अधिक हो जाएँगे।

पश्चिमी अफ्रीका और पश्चिमी यूरोप के बीच इस अन्तर के कई कारण हो सकते हैं। पहला यह कि यूरोप में आय और स्वास्थ्य सेवा इतनी अच्छी है कि ज्यादातर लोग अधिक उम्र तक जीवित रहते हैं जबकि आफ्रीका में गरीबी और कमजोर स्वास्थ्य सेवा के चलते लोग कम उम्र में ही मर रहे हैं। बाल मृत्यु दर वहाँ काफी अधिक है। दूसरी ओर पश्चिमी यूरोप में आर्थिक समृद्धि के चलते लोग बहुत कम बच्चे पैदा कर रहे है। इस समस्या को देखते हुए कई यूरोपीय देशों में बच्चे पालने के लिए विशेष प्रोत्साहन और राजकीय मदद दी जाती है।

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