कोयला ऊर्जा के स्रोतों में कोयला प्रमुख संसाधन है। प्रारम्भ में कोयले का उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता था। कोयला अठारहवीं सदी के औद्योगीकरण का महत्वपूर्ण आधार बना। इसका औद्योगिक उपयोग कई परिवर्तनों से जुड़ा है। अठारहवीं सदी में इसका उपयोग लौह अयस्क को गलाने तथा लोहा इस्पात उद्योग में किया जाने लगा। भाप संचालित इंजन, जिसका उपयोग रेलगाड़ी खींचने, जहाज चलाने व कारखाने की मशीनों को चलाने के लिए किया जाता था, कोयले के बिना संभव नहीं हो पाता। वर्तमान में कोयले का उपयोग मुख्य रूप से बिजली उत्पादन में होता है।
भारतीय भूगर्भिक सर्वेक्षण विभाग ने 2006 में अनुमान लगाया है कि 1200 मीटर की गहराई तक कोयले की तहों में लगभग 253 अरब टन कोयला संचित है। यह विश्व के कुल अनुमानित भंडार का केवल एक प्रतिशत है। यह मुख्यतः बिटुमिनस प्रकार का कोयला है जो उत्तम प्रकार का नहीं है। इसमें वाष्पीय पदार्थों तथा राख की मात्रा अधिक है और कार्बन की मात्रा 55 प्रतिशत से अधिक नहीं है। अधिकांश भंडार पूर्वी प्रायद्वीपीय पठार की कुछ नदियों की घाटियों में संचित हैं। इस कारण भारत को प्रति वर्ष 15 से 20 करोड़ टन कोयले का आयात करना पड़ता है।
भारत में कोयला क्षेत्रों का वितरण भारत में कोयला क्षेत्र निम्नलिखित चार नदी घाटियों में स्थित है।
झारखण्ड और पश्चिम बंगाल के कोयला क्षेत्र। 1. दामोदर घाटी
- सोन घाटी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के कोयला क्षेत्र।
- महानदी घाटी छत्तीसगढ़ और ओडिशा के कोयला क्षेत्र।
- गोदावरी घाटी दक्षिण-पश्चिम मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आन्ध्र प्रदेश के कोयला क्षेत्र।