जनसंख्या एवं गरीबी
क्या अधिक जनसंख्या गरीबी का कारण है? इस मुद्दे पर लंबे समय से वाद-विवाद चलता रहा है। कई लोगों का मानना है कि संसाधन और उत्पादन सीमित हैं। यदि इसका उपयोग अधिक लोगों द्वारा किया जाता है तो प्रत्येक व्यक्ति को संसाधन का लाभ कम मिलेगा जबकि उपयोग करने वाले लोग कम हो तो सबके लिए अधिक संसाधन उपलब्ध होगा लेकिन मामला इतना सरल और सीधा नहीं है।
पहली बात यह है कि उत्पादन और संसाधन कभी स्थिर या सीमित नहीं होते, वे तकनीक पर निर्भर हैं। उदाहरण के लिए जब लोग लकड़ी जलाकर ताप पैदा करते थे तो उनकी ऊर्जा का स्रोत जंगलों पर निर्भर था जो सीमित थे। लेकिन जब खनिज कोयला, खनिज तेल और गैस का उपयोग होने लगा तो ऊर्जा के नए और विशाल भंडार सामने आए और उनके उपयोग से उत्पादन में खूब वृद्धि हुई। अतः तकनीकी बदलाव से उत्पादन बढ़ाया जा सकता है और बढ़ती आबादी में बॉटने के लिए पर्याप्त सम्पन्नता हो सकती है।
दूसरी बात यह है कि किसी समाज में कितना उत्पादन होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि वहाँ काम करने के लिए कितने लोग हैं और उनकी कार्य कुशलता कैसी है। समाज में अधिक कार्य कुशल (स्वस्थ और शिक्षित) लोग होने पर उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।
उदाहरण के लिए अभी रूस में कई दशकों से आबादी कम होती जा रही है और वहाँ की सरकार इससे खुश न होकर आबादी को स्थिर करने व बढ़ाने का प्रयास कर रही है। यह इसलिए क्योंकि पर्याप्त आबादी होने पर ही कारखानों, दफ्तरों व खेतों में काम करने के लिए लोग मिलेंगे और उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।
तीसरी बात यह है कि गरीबी साधनों की कमी के कारण नहीं बल्कि उनके असमान वितरण के कारण होती है। अगर समाज के कुल उत्पादन को सभी लोगों में समान बाँटते हैं तो न कोई गरीब होगा और न कोई अमीर। कम आबादी होते हुए भी अगर समाज में असमानता है तो वितरण असमान होगा और कुछ लोग गरीब बने रहेंगे। इसी का परिणाम है कि विकसित माने-जाने वाले देशों में भी गरीब आबादी है।
अगर हम विश्व स्तर पर इसी समस्या का अध्ययन करते हैं तो पता चलता है कि वास्तव में अधिक आबादी वाले गरीब देश जैसे-बांग्लादेश, भारत, आदि संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विकसित देशों की तुलना में बहुत कम ऊर्जा संसाधनों का उपयोग करते हैं। उपर्युक्त तालिका से इस बात की पुष्टि होती है।
इसमें आप देख सकते हैं कि भारत, पाकिस्तान, नाईजीरिया जैसे देश के औसत निवासी जहाँ एक हज़ार किलो तेल से भी कम खपत करते हैं वहीं विकसित देश के निवासी दो हज़ार से सात हजार किलो प्रति व्यक्ति उपभोग करते हैं। यदि हम (भारत की पूरी आबादी) जितनी ऊर्जा की खपत करते हैं इसकी तुलना संयुक्त राज्य अमेरिका की पूरी आबादी की खपत से करें तो पाते हैं कि अमेरिका की तुलना में भारत केवल एक तिहाई ऊर्जा का उपयोग करता है।
अमेरिका की आबादी भारत की आबादी की मात्र एक चौथाई है, फिर भी वह भारत से तीन गुना अधिक संसाधनों का उपयोग करता है। यह अलग बात है कि भारत में भी सब लोग समान रूप से इन संसाधनों का उपयोग नहीं करते हैं। शहर के लोग विशेषकर अमीर लोग एक तरफ और सुदूर अंचलों के जनजाति दूसरी ओर कितने संसाधनों की खपत करते हैं यह गणना करना बहुत कठिन है।