ज़ार का गद्दी छोड़ना पेट्रोग्राड सोवियत और वहाँ के जनसामान्य के आक्रोश को देखते हुए डून ने ज़ार से आग्रह किया कि वह गद्दी छोड़ दे और डूमा को नया मंत्रीमंडल गठित करने की अनुमति दे। ज़ार की सेना में भी विद्रोह फैल गया जिसे देखते हुए ज़ार ने 2 मार्च 1917 (वर्तमान कैलेंडर के अनुसार 15 मार्च) को गद्दी त्याग दी। इस घटनाक्रम को फरवरी क्रांति के नाम से जाना जाता है।
डूमा के मध्यमवर्गीय सदस्यों ने एक मंत्रिमंडल का गठन किया जिसे अस्थाई सरकार कहा गया। यह अस्थाई इसलिए था क्योंकि सभी चाहते थे कि सार्वभौमिक मताधिकार के आधार पर चुनी गई संविधान सभा गठित हो जिसके नियमानुसार स्थाई सरकार बनेगी।
लेकिन यह अस्थाई सरकार सोवियत पर पूरी तरह निर्भर थी क्योंकि सोवियत ही वास्तव में हर क्षेत्र पर नियंत्रण कर रहे थे। उन दिनों पेट्रोग्राड सोवियत का नेतृत्व तीन-चार समाजवादी दलों के प्रतिनिधि कर रहे थे।
वे यह मानते थे इस क्रांति का नेतृत्व मध्यम वर्ग को निभाना है जिसे देश में लोकतंत्र, भूमिसुधार और शान्ति लाना है। वे मानते थे कि सोवियतों की भूमिका मध्यम वर्ग के लोगों को पीछे हटने से या पुराने शासकों की वापसी को रोकना है।