दो विश्व युद्धों के बीच रूसी क्रांति और महामंदी

दो विश्व युद्धों के बीच रूसी क्रांति और महामंदी

जैसे-जैसे प्रथम विश्व युद्ध समाप्त होने लगा, वैसे-वैसे पूरे यूरोप में एक क्रांतिकारी लहर उठी जिसने पुराने राजघरानों और तानाशाही राज व्यवस्थाओं को उखाड़ फेंका। इसकी शुरुआत मार्च 1917 में रूस की क्रांति से हुई जब वहाँ के सम्राट जार निकोलस को अपनी गद्दी त्यागनी पड़ी। धीरे-धीरे यह लहर जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, बुल्गारिया, तुर्की आदि के राजघरानों को धराशायी कर गई।

रूस में अक्टूबर 1917 को एक और क्रांति हुई जिसके द्वारा वहाँ साम्यवादियों की सरकार बनी। अन्य देशों में साम्यवादी या समाजवादी सरकारें तो नहीं बनीं मगर वहाँ लोकतंत्र की स्थापना हुई।

जर्मनी में वाईमर संविधान (वाईमर नामक जगह पर इस संविधान की रूपरेखा बनी थी) लागू हुआ जिसके तहत हर वयस्क, महिला व पुरुष, अमीर और गरीब सबको चुनाव लड़ने व वोट डालने का अधिकार मिला लेकिन वाईमर गणतंत्र लगातार तनाव से ग्रसित था क्योंकि एक तरफ उस पर विजयी देशों का दबाव था कि वह वरसाई संधि की शर्तों को पूरा करे और वहीं दूसरी ओर जर्मन लोगों में इसके खिलाफ ज़बरदस्त गुस्सा उफन रहा था।

तुर्की में पुराने ओटोमान सुल्तानों (जो अपने आपको मुसलमानों के खलीफा मानते थे) के राज्य की जगह मुस्तफा कमाल अतातुर्क के नेतृत्व में 29 अक्टूबर 1923 को एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष शासन स्थापित हुआ और औद्योगीकरण की प्रक्रिया शुरू की गई।

इस्लामी धार्मिक कानून की जगह लोकतांत्रिक कानून लागू किया गया और धार्मिक मदरसों की जगह सभी बालक-बालिकाओं के लिए आधुनिक स्कूल व्यवस्था स्थापित की गई। इस प्रकार तुर्की एक इस्लामी साम्राज्य न रहा और एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में विकसित होने लगा।

सन् 1929 में विश्व भर में आर्थिक मंदी का दौर शुरू हुआ जिसके कारण विश्व के अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई और बेरोज़गारी तेज़ी से बढ़ी। जर्मनी में इस मंदी और वरसाई संधि के तहत हो रही हानि के कारण आर्थिक संकट गहराया। लोगों में अपनी सरकार के प्रति आक्रोश पैदा होने लगा।

इसका फायदा उठाकर हिटलर और उसकी नाजी पार्टी सत्ता में आई और तेजी से विपक्षी दलों व मज़दूर संगठनों का क्रूरता के साथ दमन किया और साथ ही यहूदियों के खिलाफ एक भयानक अभियान छेड़ा। धीरे-धीरे हिटलर वरसाई संधि की शर्तों का उल्लंघन करता गया और युद्ध के माध्यम से विश्व पर आधिपत्य जमाने की तैयारियाँ शुरू कर दी।

उन्हीं दिनों ब्रिटेन और अमेरिका में एक नए तरह के राज्य की अवधारणा विकसित हुई जिसे वेल्फेयर स्टेट कहते हैं। इसमें माना गया कि राज्य लोकतांत्रिक सिद्धांतों के आधार पर चले, नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों की सुरक्षा हो और साथ में राज्य लोक कल्याण को अपनी प्रमुख जिम्मेदारी माने।

इसके तहत सार्वभौमिक मताधिकार, राज्य से स्वतंत्र संचार माध्यम, बहुदलीय राजनीति आदि के साथ-साथ, नागरिको को समान अवसर दिलवाना और शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोज़गार, निराश्रितों, बीमारों व वृद्धों की देखभाल आदि राज्य ने अपने जिम्मे में ले लिया। इस तरह के राज्य के लोक कल्याणकारी कार्य के द्वारा ब्रिटेन व अमेरिका जैसे देश सन् 1929 की मंदी से उभर पाए।

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