पेट्रोलियम
आधुनिक युग का सबसे महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत पेट्रोलियम है लेकिन प्लास्टिक और खाद जैसे रासायनिक उद्योगों में भी इसका बहुतायत उपयोग किया जाता है। भारत में 2015 में लगभग 4 करोड़ टन पेट्रोलियम उत्पन्न किया गया जो कि हमारे कुल उपयोग के एक-चौथाई से कम है। इस कारण भारी मात्रा में पेट्रोलियम और उससे बनी वस्तुएँ आयात करनी पड़ती हैं। 2015 में 19 करोड़ टन पेट्रोलियम और उससे बनी वस्तुएँ आयात की गई। हमारे सकल घरेलू उत्पादन का लगभग पाँच प्रतिशत इस आयात में लगता है जो कि बहुत अधिक है।
1866 में भारत में ऊपरी असम घाटी में तेल खोजने के लिए कुएँ खोदे गए. परन्तु इसका पता 1890 में डिगबोई में लगा। 1893 में यहीं पेट्रोलियम को साफ करने के लिए तेलशोधक कारखाना खोला गया। 1899 में असम आयात कम्पनी की स्थापना की गई। अन्य क्षेत्रों में पेट्रोलियम खोजने का प्रयास किया गया और 1953 में, नहरकटिया क्षेत्र की खोज हुई।
चित्र 4.5-डिगबोई भारत का सबसे पुराना पेट्रोलियम कुओं और तेल संशोधक संयत्र
1960 में गुजरात के अंकलेश्वर क्षेत्र (वसुधारा) से उत्पादन प्रारंभ हुआ। 1961 के बाद पेट्रोलियम खोजने का काम काफी तेज़ किया गया और गुजरात के विभिन्न पेट्रोलियम क्षेत्रों का पता लगा। साथ ही असम में भी कई क्षेत्र ढूँढे गए। परिणामतः उत्पादन तेज़ी से बढ़ा। यह 1961 के 513 हजार टन से बढ़कर 1975 में 6311 हजार टन हो गया। तट के निकट (अपतटीय) समुद्र में खुदाई 1970 में गुजरात के अलियाबेत में आरंभकी गई। 1975 में मुम्बई हाई का पता लगा और अगले वर्ष से उत्पादन आरंभ हुआ। लगातार प्रयत्न के परिणामस्वरूप पूर्वी तटीय क्षेत्र कावेरी तथा कृष्णा-गोदावरी बेसिनों में भी पेट्रोलियम का पता चला और उत्पादन शुरू हो गया है। राजस्थान के बाड़मेर में पेट्रोलियम का बड़ा भंडार पाया गया है।
भारत में पेट्रोलियम का अनुमानित भंडार 17 अरब टन है। यह स्थलीय तथा अपतटीय क्षेत्र में संचित है। कुल भंडार चार क्षेत्रों में वितरित है। 1. उत्तर पूर्वी क्षेत्र (ऊपरी असम घाटी, अरुणाचल प्रदेश और नागालैण्ड) 2 गुजरात प्रदेश (खंभात बेसिन और गुजरात के मैदान) 3. मुम्बई हाई अपतट प्रदेश तथा 4. पूर्वी तटीय प्रदेश (गोदावरी-कृष्णा और कावेरी बेसिन)।