मृदा

जब हम भू-संसाधन की बात करते हैं तो हम प्रमुख रूप से मिट्टी या मृदा की बात। कर रहे होते हैं। यह भू-संसाधन का सबसे महत्वपूर्ण अंश है। सामान्य अर्थों में पृथ्वी के धरातल की ऊपरी परत या मिट्टी जिस पर वनस्पति उमती है, मृदा कहलाती है।

मृदा चट्टानों के विघटन से बनती है और इसमें जलवायु वनस्पति, आदि की प्रमुख भूमिका है। चट्टानें गर्मी सर्दी और पानी से प्रभावित होकर टूटती फूटती या घिसती हैं, जिससे बारीक कण अलग हो जाते हैं। इनमें वनस्पति व जानवरों के अवशेष मिल जाते हैं और लंबे समय के बाद ये मृदा में परिवर्तित हो जाते हैं। मृदा से वनस्पतियाँ पोषण प्राप्त करती है और अन्य जीव व जानवर वनस्पतियों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपना भोजन प्राप्त करते है। मृदा न केवल जीवधारियों को भोजन उपलब्ध कराती है बल्कि इसका उपयोग ईंट, बर्तन, खिलौने, मूर्ती, खपरा आदि निर्माण में भी किया जाता है। ग्रामीण भारत में मकानों की दीवारें, दीवारों एवं फर्श की लिपाई पुताई मिट्टी से किया जाता है।

अगर आप कभी मकान के नींव या कुआँ खुदते हुये देखें तो पाएँगे कि मिट्टी जमीन पर कई परतों में बिछी हुई है। मृदा की इन क्षैतिज परतों को मृदा परिच्छेदिका कहा जाता है। मृदा की परतों को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया जाता है- जैविक परत. खनिज परत एवं आधार परत। नीचे दिये गए चित्र को देखें। उसमें सबसे नीचे आधार चट्टान की परत दिख रहा है जिसे R परत कहा गया है। इसी आधार चट्टान के विघटन से इस मिट्टी का निर्माण हुआ है। इसके ऊपर कमशः C, B, A और O परत हैं।

मृदा परिच्छेदिका

जैविक परत: यह सबसे ऊपरी परत है जिसमें और A सम्मिलित हैं। परत में पेड़ पौधे एवं जंतुओं के अपघटित अश मिला होता है, जिसे हह्यूमस भी कहते हैं। इसके नीचे A परत होती हैं जो खनिज परत होती है किंतु यह परत से अधिक प्रभावित होता है। जिस कारण इसमें जैविक पदार्थों की अधिकता होती है। जैविक परत की मोटाई भिन्न-भिन्न होती है, नदी घाटी के निचले भागों में इसकी मोटाई सर्वाधिक होती है। जैविक परत पर कृषि कार्य होता है एवं वनस्पतियाँ उगती है। इस कारण यह परत बहुत महत्वपूर्ण है। किंतु अपरदन का प्रभाव सबसे पहले इसी परत पर पड़ता है। फसलों के लिए A C कीटनाशकों का प्रयोग हो या कचरों का निस्तारण सभी इसी परत को प्रभावित करते हैं।

जैविक परत

B खनिज परत

R आधारी परत

खनिज परत: यह बीच की परत होती है जिसमें B परत सम्मिलित है। यह खनिज परत होती है, जिसमें ‘जीवांश की मात्रा बहुत कम पाई जाती है। जैविक परत की तुलना में इसके कण मोटे होते है। इस परत तक उन पौधों की जड़े पहुँचती है जिनकी जड़ें काफी गहराई तक जाती है। उदाहरण स्वरुप टमाटर के पौधे की जड जैविक परत तक सीमित रहती है जबकि आम के पेड़ की जड़ खनिज परत तक जाती है।

आघारी परत : यह सबसे निचली परत है इसमें C और R परत सम्मिलित हैं। जिसमें R आधारी चट्टान होती है जिसके विखंडन से C परत का निर्माण होता है।

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