लोगों के आंदोलन और शासन की पहल

लोगों के आंदोलन और शासन की पहल

1929 की भीषण मंदी के कारण जगह-जगह त्रस्त लोगों के आंदोलन

हुए और बहुत तेज़ी से लोगों का पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से मोहभंग हुआ। भारत जैसे उपनिवेशों में भी सरकार के विरुद्ध राष्ट्रवादी आंदोलन तेज़ हो गए। इसी समय महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारत में व्यापक असहयोग आंदोलन शुरू हुआ था।

ऐसे आंदोलनों के दबाव के कारण सरकारों व अर्थशास्त्रियों ने पुराने सिद्धांतों की जगह नए सिद्धांत विकसित किए। पहले यह माना जाता था कि सरकारों को अर्थव्यवस्था में दखल नहीं देना चाहिए और उसे अनियंत्रित बाजार पर छोड़ देना चाहिए। अब समी यह स्वीकार करने लगे कि सरकारों को हस्तक्षेप करना चाहिए और अपने देश के उद्योग और कृषि के हितों की रक्षा में विदेशों से आयात को नियंत्रित करना चाहिए और जरूरत पड़ने पर किसानों को अनुदान और मज़दूरों को रोज़गार की व्यवस्था करनी चाहिए।

जॉन कीन्स नामक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ने कहा कि मंदी के दौर में राज्य को लोक कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च करना चाहिए और सबके लिए रोजगार उपलब्ध कराना चाहिए। इससे लोगों की बाज़ार में चीजें खरीदने की क्षमता बनेगी और माँग फिर से मजबूत होगी। इस प्रकार राज्य द्वारा उत्पन्न माँग से आर्थिक स्थिति को सुधारने के अवसर प्राप्त होंगे।

फ्रांक्लिन रूजवेल्ट 1933 में अमेरिका का नया राष्ट्रपति बना। उसने “न्यू डील” की घोषणा की जिसमें आर्थिक मंदी से ग्रसित लोगों को राहत, वित्तीय संस्थाओं में सुधार तथा शासकीय निर्माण कार्य द्वारा आर्थिक स्थिति को सुधारने का वचन दिया गया। इसका वास्तविक असर द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ होने के साथ 1939 के बाद आया जब सरकार पर युद्ध के हथियार बनाने तथा सेना की ज़िम्मेदारी आई।

इससे कारखानों में उत्पादन बढ़ा और कृषि सामग्रियों की माँग भी बढ़ गई। इस दौरान अमेरिका में सामाजिक सुरक्षा योजना लागू की गई जिसके अंतर्गत सभी सेवानिवृत्त वृद्धों के लिए एक पेंशन योजना बनाई गई। बेरोज़गारी बीमा तथा विकलांगों और ज़रूरतमंद बच्चों के लिए (जिनके पिता न हों) कल्याणकारी योजनाएँ बनाई गई।

असल में मंदी के दौर से भी पहले ही जर्मनी और ब्रिटेन ने इस दिशा में कदम उठाया था। दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने दूसरी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं, जैसे बीमार लोगों के लिए स्वास्थ्य संबंधी और शिशु सुरक्षा संबंधी योजनाएँ भी बनाई। यह एक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा पर आधारित थी।

जिसमें राज्य सभी नागरिकों को एक अच्छे जीवन का आश्वासन दे और उनकी सभी मौलिक आवश्यकताओं, जैसे- अन्न, आवास, स्वास्थ्य, बच्चों और वृद्धों की देखभाल तथा शिक्षा का ख्याल रखे। राज्य ने योग्य नागरिकों को रोज़गार दिलाने का भार भी अपने ऊपर लिया। इस प्रकार राज्य ने पूँजीवादी बाजार में हो रहे उतार-चढ़ाव के प्रभाव को कम करने का प्रयत्न किया। सरकारों के इन कल्याणकारी कार्यों के लिए धन ऊँचे करों से प्राप्त किया गया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बहुत-सी सरकारों ने इस नीति को अपनाया।

वास्तव में भीषण मंदी 1939 में समाप्त हुई जब दूसरा विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ। सभी देश की सरकारों ने युद्ध सामग्री की माँग की और उसके लिए पूँजी की व्यवस्था भी की। इन उद्योगों में बहुत लोगों को रोज़गार मिला। साथ ही लाखों को सेना में भर्ती किया गया। इस प्रकार ये देश मंदी के असर से उबर पाए।

Leave a Reply

Shopping cart

0
image/svg+xml

No products in the cart.

Continue Shopping