YAGPA2 किसी भी क्षेत्र में फसल प्रतिरूप में बदलाव के कई कारण हो सकते हैं इसे समझने के लिए हम सांकरा गांव की कहानी को पढ़ते हैं यूँ तो छत्तीसगढ़ में कई सांकरा नाम के स्थान हैं किन्तु यह सांकरा धमतरी जिले के नगरी तहसील का एक प्रमुख गाँव है।
धमतरी जिले का यह एक बड़ा गाँव है। गाँव के लोग विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में संलग्न है किन्तु अधिकांश लोगों का जुड़ाव कृषि से है। यहाँ की प्रमुख फसल धान है। पहले किसान धान की खेती खरीफ मौसम में करते थे जो मानसूनी वर्षा पर निर्भर होती थी। खरीफ के बाद रबी में चना, खेसारी (लाखडी), गेहूँ, अलसी आदि फसल उपजाते थे। रबी की फसल अपेक्षाकृत कम क्षेत्र पर बोई जाती थी। किन्तु लगभग 25 वर्ष पहले सॉदुर जलाशय से नहर द्वारा किसानों के खेत तक पानी दिया
गया। इससे किसानों को अब खरीफ मौसम में भी वर्षा का इंतजार नहीं करना पड़ता है। नहर के पानी से सिंचाई कर धान का उत्पादन करते हैं। खरीफ के अलावा रबी मौसम में भी किसानों को खेतों में भरपूर पानी दिया गया। यह पानी एक साथ दिया जाता है जिससे सभी खेतों में पानी की इतनी मात्रा हो जाती है कि वहाँ आसानी से धान की उपज हो सकती है।
किन्तु कम पानी की आवश्यकता वाली फसलें जैसे चना, खेसारी (लाखडी), गेहूँ अलसी आदि नहीं हो सकती है। शासन के द्वारा किसानों को न केवल पानी उपलब्ध कराया गया बल्कि धान की खरीदी की व्यवस्था भी की गई। इससे किसान धान की खेती की ओर प्रोत्साहित हुए और रबी फसलों में भी कई किसानों ने गेहुँ चना, अलसी, खेसारी आदि की खेती छोड़ दी। इससे प्रदेश में धान का उत्पादन बढ़ा और चना, अलसी लाखसी आदि फसलों का उत्पादन कम हुआ। इस प्रकार शासन के द्वारा उठाए गए कदम से गाँव के फसल प्रतिरुप में बदलाव आया है।
किन्तु आज यहाँ के किसान भी कुछ समस्याओं से ग्रस्त हैं। उनका कहना है कि अब वे रबी मौसम में चना, खेसारी (लाखडी) गेहूँ अलसी आदि की खेती चाह कर भी नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि खेतों में एक साथ पानी बहा दिया जाता है जिससे मिट्टी इतनी गीली हो जाती है कि उस पर धान की खेती ही सम्भव है।
किसान अब खेतों में एक ही प्रकार की फसल धान बार-बार लगा रहे हैं। इससे खेतों की उर्वरक क्षमता कम हो रही है। पहले वे एक धान की फसल बोते थे और दूसरी चना, लाखडी अलसी आदि की फसल बोले थे जिससे भूमि की उर्वरता प्राकृतिक रुप से बनी रहती थी। चना, खेसारी आदि दलहन वर्ग की फसल मिट्टी में नाइट्रोजन को संवर्द्धित करने में सहायक होती हैं। आज खरीफ और रबी मौसम में धान बो रहे हैं जिससे उर्वरक क्षमता नष्ट हो रही है।
पहले खेतों में मछलियाँ होती थी जो उनके भोजन का हिस्सा हुआ करती थी। लोग खेतों से मछलियों पकड़कर उसे तुखाकर उसका सेवन लम्बे समय तक करते थे। लेकिन आज खेतों से मछलियों तो क्या, केंचुए भी गायब हो गए हैं। गाँव के लोगों का मानना है कि रासायनिक खाद और कीटनाशकों ने सभी मछलियों को नष्ट कर दिया। अब उन्हें बाजार से बड़ी नछलियाँ खरीद कर खाना पड़ता है जो सबकी पहुँच में नहीं है।
किसानों का यह अनुभव है कि अब वे खेत पर बिना रासायनिक खाद और कीटनाशक के खेती नहीं कर सकते हैं किन्तु पहले ऐसा नहीं था। वे गोबर की खाद की सहायता से खेती करते थे और उसमें कीटाणु नहीं लगते थे। अर्थात् अब किसानों की दुकानदारों पर निर्भरता बढ़ गई है। उन्हें बीज, उर्वरक, कीटनाशक आदि दुकानों से ही खरीदना पड़ता है।