शक्ति या ऊर्जा: किसी भी उद्योग में मशीनों को चलाने के लिए विद्युत शक्ति की आवश्यकता होती है।
ये शक्ति ताप बिजली (कोयले से), जल विद्युत (बाँधों से), पवन बिजली, सौर ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा आदि से प्राप्त होती है। कोयला वज़न में काफी भारी होता है। साथ ही कोयले से बनने वाले बिजली गृह के आसपास के क्षेत्रों में कोयले से निकलने वाली राख (ऐश) से काफी प्रदूषण होता है।
कोयले का विकल्प है डीज़ल। लेकिन ये दोनों पर्यावरण की दृष्टि से प्रदूषणकारी हैं और जैसा कि आप जानते हैं ये प्रकृति में सीमित मात्रा में ही उपलब्ध है और समय के साथ इनके खत्म हो जाने का डर है। इसलिए आजकल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत भी तलाशे जाने लगे हैं, जैसे सौर ऊर्जा, पन बिजली, वायु ऊर्जा, कचरे से बिजली बनाना आदि।
इनमें से सबसे किफायती बिजली बाँधों से बनने वाली जल विद्युत ऊर्जा, लेकिन बड़े बाँधों से बहुमूल्य वन और खेतिहर जमीन डूब जाती है और कई गाँव उजड़ जाते हैं। छोटे और मध्यम बाँध और पहाड़ी ढलानों पर बने बिजली संयंत्र इसके उचित विकल्प हो सकते हैं। जिन राज्यों व देश में विद्युत सतत व सस्ती मिलती है वहाँ औद्योगीकरण की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। यहाँ सतत का तात्पर्य किसी भी कारखाने में मशीन चलाने के लिए विद्युत 24 घंटे निर्बाध रूप से मिलते रहने से है।