निजीकरण और वैश्वीकरण

निजीकरण: सरकार द्वारा सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में बेचा जाना उन उपक्रमों का निजीकरण करना कहलाता है। विगत सालों में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में घटते लाभ को देखते हुए इनके प्रबंधन में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने, घाटे में चल रहे बीमार उपक्रमों को बंद करने की मांग तेजी से बढ़ने लगी।

सार्वजनिक उपक्रमों में लगातार बढ़ती समस्याओं के समाधान के लिए सरकार ने अपने आर्थिक सुधार कार्यक्रमों की श्रृंखला के दौर में सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश की नीति अपनाई और इन सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण का मार्ग खोल दिया। इस प्रक्रिया में सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों के अंशों को बेचना आरंभ किया। इससे इनके प्रबंधन में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ी एवं अतिरिक्त संसाधनों का एकत्रीकरण भी हुआ।

वैश्वीकरण/भूमण्डलीकरण 1980 व 1990 के दशकों में शुरू हई वैश्वीकरण की प्रक्रिया के तहत पूँजी के साथ-साथ वस्तुएँ और सेवाएँ, श्रमिक और संसाधन एक देश से दूसरे देश में स्वतंत्रतापूर्वक आ जा सकते है। वैश्वीकरण का मुख्य ज़ोर घरेलू और विदेशी प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने पर है। वैश्वीकरण को हम दो तरह से समझ सकते हैं:

  1. एक आर्थिक व राजनैतिक प्रक्रिया जिसके तहत उत्पादन और वितरण का अंतर्राष्ट्रीयकरण होता है। अर्थात् देशों के बीच उत्पादन, पूँजी, श्रम, विचारों व संस्कृति के आवागमन या लेन-देन में जो बाधाएँ थीं या है, उनका खात्मा। ताकि पूरे विश्व में इन सब बातों का बेरोकटोक लेन-देन हो सके।

2 वैश्वीकरण को आगे बढ़ाने के लिए सुझाई गई नीतियों जिन्हें हम उदारीकरण की नीतियाँ भी कहते हैं।

Leave a Reply

Shopping cart

0
image/svg+xml

No products in the cart.

Continue Shopping