काम और कार्यशील जनसंख्या
हमारे देश की जनगणना में किसे श्रमिक या उत्पादक (काम करने वाला) मानें ये बहुत उलझाने वाले सवाल हैं। ज्यादातर लोगों के पास कोई नियमित काम नहीं होता उनके काम का स्वरूप बदलते रहता है। लोगों के पास कभी रोजगार होता है और कभी वे खाली बैठे होते हैं। ऐसे में उन्हें किस श्रेणी में गिना जाए? इसका ठीक-ठीक हल तो नहीं निकल सकता है मगर जनगणना आयोग उसके लिए एक कामचलाऊ परिभाषा का उपयोग करता है।
2011 की जनगणना के मुताबिक काम को आर्थिक रूप से उत्पादक गतिविधियों में भागीदारी के साथ जोड़कर देखा गया है। यह भागीदारी शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों में हो सकती है। काम के अंतर्गत न केवल वास्तविक काम शामिल है बल्कि सुपरवाइजरी और निर्देशन भी इस श्रेणी में आता है। इसके अंतर्गत आंशिक रूप से खेत पारिवारिक उद्यम या किसी अन्य आर्थिक गतिविधियों में मदद या अवैतनिक काम भी शामिल हैं। इस तरह उपर्युक्त कार्यों में लगे सभी लोग श्रमिक हैं।
जो व्यक्ति घरेलू खपत के लिए भी पूरी तरह से खेती या दूध के उत्पादन में लगे हुए हैं, उनको भी श्रमिक के रूप में माना जाता है लेकिन दैनिक घरेलू काम करना जैसे-खाना पकाना, पानी भरना, बच्चों की देखभाल, घर की साफ-सफाई आदि को उत्पादक श्रम नहीं माना गया है।
2011 की जनगणना के अनुसार देश के 30 प्रतिशत लोग मुख्य रूप से उत्पादक काम में लगे हैं और लगभग 10 प्रतिशत लोग आंशिक रूप से उत्पादक कार्य करते हैं। लगभग 60 प्रतिशत लोग उत्पादक काम में नहीं लगे हैं। छत्तीसगढ़ में थोड़ा फर्क है यहाँ 32 प्रतिशत लोग मुख्य रूप से उत्पादक काम में लगे हैं और लगभग 16 प्रतिशत लोग आंशिक रूप से उत्पादक कार्य करते हैं। लगभग 52 प्रतिशत लोग उत्पादक काम में नहीं लगे हैं।