प्रथम विश्व युद्ध में नई तकनीकें
मशीन गन ट्रेंचों के जाल के पीछे आम तौर पर मशीन गनों का उपयोग किया जाता था। इनका उपयोग पहली बार इसी युद्ध में किया गया। एक मशीन गन के माध्यम से प्रति मिनट सैकड़ों गोलियों दागी जा सकती थीं। रायफल जिसे एक बार चलाने के बाद दुबारा गोली भरना पडता था, की तुलना में मशीन गन की मारक क्षमता करीबन सौ गुना बढ़ गई।
तोप – इस युद्ध में मारी मात्रा में तोपों का उपयोग किया गया। सबसे भारी तोपों से 50 से 60 गोले प्रति मिनट दागे जा सकते थे। निश्चित दूरी पर लगातार मार करने वाली तोपें ट्रॅचों से हो रहे गतिरोध को तोड़ने में सक्षम थीं। तोपों से प्रतिद्वन्द्वी सैनिकों, उनके हथियारों, उपकरणों और ट्रॅचों को एक साथ नुकसान पहुँचाया जा सकता था।
टैंक – सन् 1899 में ब्रिटेन में मशीन गन एवं बुलेट प्रूफ स्टील के आवरण से ढके युद्धक मोटर कार का विकास हुआ। पहियों की जगह इसमें चैन ट्रेक लगाकर इसे कीचड़ और ऊबड़-खाबड़ खाइयों पर भी चलने लायक बनाया गया था। इस तरह टैंक का आविष्कार हुआ।
पनडुब्बी – जर्मनी ने समुद्र सतह के नीचे छुपकर चलने वाली और विरोधी जहाज़ों पर गोले दागने वाली यू-बोट (पनडुब्बी) का निर्माण किया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन के 50 प्रतिशत व्यापारिक जहाज़ जर्मन यू-बोट के द्वारा नष्ट कर दिए गए।
विषैली गैस जर्मनी, जिसके औद्योगीकरण में रसायन उद्योग महत्वपूर्ण था, ने युद्ध में विषैली गैसों का प्रयोग किया जिनके प्रभाव से लोगों की मौत हुई या वे अंधे हो गए। इसके चलते विरोधी देशों के सैनिकों को गैस नकाब पहनकर लड़ना पड़ा।
इसके दुष्प्रभावों को देखते हुए युद्ध के कुछ समय बाद ही सारे देशों ने मिलकर निर्णय लिया कि आने वाले समय में इस तरह के रासायनिक हथियारों का उपयोग युद्ध में नहीं किया जाएगा। इसे जेनेवा कंवेन्शन कहते हैं जिसमें युद्ध लड़ने के नियमों को लेकर कई महत्वपूर्ण नियम स्वीकृत किए गए।
रेलगाड़ी – प्रथम विश्व युद्ध में सैनिकों, शस्त्रों, रेल मार्ग से चलने वाली तोपों व रसद को दूर के ठिकानों तक पहुँचाने का काम रेलगाड़ियों ने किया और इस प्रकार इस नए यातायात साधन ने युद्ध में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया।
विमान दिसंबर 1903 में राईट बंधुओं के प्रथम विमान बनाने के बाद से प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत तक विमानों का निर्माण और तकनीकी अपनी प्रारंभिक अवस्था में थी। इस दौरान विमानों का प्रयोग मुख्यतः हवाई गश्त के माध्यम से शत्रु सेना की टोह लेने के लिए किया जाता था।
जल्द ही सरकारें विमानों के सामरिक महत्व को समझ गई। फलस्वरूप प्रथम विश्व युद्ध के दौरान विमान निर्माण की तकनीकी का तीव्रता से विकास हुआ। युद्ध के प्रारंभ और अंत के बीच दोनों गुटों में विमानों की संख्या लगभग 850 से बढ़कर 10,000 तक हो गई। प्रथम विश्व युद्ध के अंत तक हवा में अधिक देर टिकने वाले, तेज, शक्तिशाली, मज़बूत और अधिक विकसित विमानों का निर्माण शुरू हो गया।