राष्ट्र संघ की स्थापना
उन्नीसवीं सदी के अन्त से कई राजनेताओं ने एक ऐसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की कल्पना की जो देशों के बीच की समस्याओं का समरसता से समाधान करे। युद्ध के दौरान विल्सन के सिद्धांतों में भी यह बात कही गई। विल्सन ने इसके लिए विशेष प्रयास किया। उस समय की कल्पना में उपनिवेशों को स्वतंत्र देश नहीं माना गया।
उन्हें इस संगठन में स्थान देने की बात नहीं की गई। सन् 1920 में जेनेवा (स्विट्ज़रलैंड की राजधानी) में राष्ट्र संघ (League of Nation) की स्थापना की गई जिससे अपेक्षा थी कि वह देशों के बीच के झगड़ों का शान्तिपूर्ण तरीकों से निपटारा करेगी और उनमें स्वास्थ्य, श्रमिकों की दशा, खाद्य सुरक्षा आदि विषयों में विकास के लिए मदद करेगी।
इसका प्रमुख काम था विश्व युद्ध के बाद किए गए अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों का क्रियान्वयन। उदाहरण के लिए, वरसाई समझौते के अन्तर्गत सार क्षेत्र (जिसे फ्रांस के उपयोग के लिए दिया गया था) और डैन्जिंग पट्टी जिसें पोलैंड को समुद्र तक पहुँच के लिए दिया गया था का प्रशासन राष्ट्र संघ को देखना था।
राष्ट्र संघ के गठन में ही कई समस्याएँ थीं। पहली बात तो यह थी कि इसमें विल्सन की अहम भूमिका के बावजूद अमेरिका इसमें सम्मिलित नहीं हुआ। सोवियत रूस जो विश्व भर में समाजवादी क्रांति की पैरवी कर रहा था को इसमें आमंत्रित नहीं किया गया। एशिया और अफ्रीका के उपनिवेशों को इसमें सदस्य नहीं बनाया गया।