सन् 1905 की घटनाएँ- जारशासित रूस में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक अधिकार नहीं थे और लोगों को
सरकार की खुलकर आलोचना करने या अपनी समस्याओं को लेकर आंदोलन करने के अधिकार नहीं थे। चूँकि राज्य का विरोध खुलकर नहीं हो सकता था, जगह-जगह गुप्त संगठन बने जो गुप्त रूप से लोगों को संगठित करते थे और गुप्त आंदोलन चलाते थे। समय-समय पर यह आतंकी हमलों का रूप लेता था।
गुप्त संगठनों में रूस की समाजवादी व साम्यवादी पार्टी, किसानों की क्रांतिकारी पार्टी और उदारवादियों की पार्टियाँ प्रमुख थीं। सन् 1905 में रूस और जापान का युद्ध हुआ जिसमें रूस इस छोटे एशियाई देश से हार गया। इस कारण ज़ार का दबदबा कमजोर हुआ। उसी समय रूस के विभिन्न शहरों में मज़दूर अपने काम के हालातों के विरुद्ध और लोकतंत्र के लिए हड़ताल करने लगे।
जब पीटर्सबर्ग शहर (राजधानी) में मज़दूर शान्तिपूर्वक जुलूस निकालकर जार के महल के सामने अपनी गुहार सुनाने के लिए इकट्ठा हुए तो उन पर गोली चलाई गई और हज़ार से अधिक लोग मारे गए। इससे क्रुद्ध होकर पूरे रूस में विरोध प्रदर्शन हुए। इनको देखते हुए ज़ार ने कई राजनैतिक सुधारों की घोषणा की।
रूस में भी चुनी हुई संसद (जिसे डूमा कहा गया) की स्थापना हुई। लेकिन चुनाव एक जटिल अप्रत्यक्ष तरीके से होता था ताकि डूमा में अधिकतर संपत्तिवाले ही पहुँचे। ज़ार डूमा के किसी भी प्रस्ताव को ठुकरा सकता था। उसका अधिवेशन भी ज़ार अपनी सुविधानुसार बुलाता था।
इस घोषणा के साथ ही बहुत क्रूर तरीकों से आंदोलन को दबाया गया जिसके चलते दस हजार से अधिक लोग मारे गए और 75,000 से अधिक लोगों को जेलों में बंद कर दिया गया या घोर ठंडी जगह साइबेरिया में कालापानी की सज़ा दी गई।