अमेरिका के संकट ने पूरे विश्व को कैसे प्रभावित किया? उन दिनों अमेरिका विश्व का सबसे बड़ा व्यापारिक देश था। वह दुनिया का सबसे बड़ा निर्यात करने वाला देश था और ब्रिटेन के बाद सबसे बड़ा आयात करने वाला देश था। वह युद्ध से उभर रहे यूरोप का सबसे बड़ा कर्जदाता और निवेशक था। फलस्वरूप पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था का ताना-बाना अमेरिका पर निर्भर था।
अपने आर्थिक संकट के कारण अमेरिका ने जर्मनी, ब्रिटेन आदि को उधार देना कम कर दिया। अपने कृषि और उद्योगों को बचाने के लिए अमेरिका ने दूसरे देशों से आयात कम कर दिया। 1930 से देखते-देखते अमेरिका का संकट पूरे विश्व पर छा गया, विशेषकर उन सभी देशों पर जो आपस में व्यापार और निवेश से बँधे हुए थे।
1929 से 1933 के बीच अंतर्राष्ट्रीय व्यापार 60 प्रतिशत कम हो गया। दुनिया भर के किसान जो व्यापारिक फसल उगाते थे बर्बाद हो गए क्योंकि उनकी उपज के लिए कोई खरीददार नहीं रहे। अमेरिका और अन्य कई देशों के किसान अपनी जमीन बेचकर शहरों की तरफ कूच कर गए। लेकिन शहरों में भी कोई काम नहीं था। ब्रिटेन में 23 प्रतिशत लोग बेरोज़गार थे जबकि जर्मनी में 44 प्रतिशत लोगों के पास काम नहीं था।
भीषण मंदी का प्रभाव सोवियत रूस पर सबसे कम पड़ा और वहाँ उसी समय प्रथम पंचवर्षीय योजना के तहत तेजी से औद्योगिक विकास हो रहा था। इसके दो प्रमुख कारण थे पहला यह कि रूस उन दिनों विश्व आर्थिक व्यवस्था से बहुत कम जुड़ा था और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर था।
इस कारण विश्व बाज़ार की मंदी का उस पर प्रभाव नहीं था। दूसरा कारण यह था कि रूस में समाजवादी सिद्धांतों के अनुसार सरकार की केन्द्रीय योजना के अनुरूप आर्थिक विकास किया जा रहा था जिसमें बाजार के उतार-चढाव का कोई दूरगामी असर नहीं था।